फिर क्या था, गलत बात के विरोध में भूख हडताल करना अब सभी का प्रिय शगल बन चुका है।
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आज इतने सालों बाद, किसी को भी ये याद नहीं है, मगर अपने मूल अधिकारों से भी आगे बढ कर अपने अपने निजी, राजनैतिक या जातिगत स्वार्थों के लिये लढ़ना, हडताल करना, मारपीट और दंगे करना, आदि याद रहा.
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आज इतने सालों बाद, किसी को भी ये याद नहीं है, मगर अपने मूल अधिकारों से भी आगे बढ कर अपने अपने निजी, राजनैतिक या जातिगत स्वार्थों के लिये लढ़ना, हडताल करना, मारपीट और दंगे करना, आदि याद रहा.